जयपुर का इतिहास

जयपुर का इतिहास

राजस्थान की राजधानी जयपुर पिंक सिटी देशी-विदेशी सैलानियों की पहली पसंद है। चारो ओर से आरवाली पर्वतमलाओ की गोद में बसा जयपुर शहर । शानदार महलों ओर भवनों वाले इस शहर को बनाते समय इसमें आवागमन के लिए 7 प्रवेश द्वार बनाए गए थे। बता दें कि जयपुर शहर जहां बसा हुआ है, वहां कभी 6 गांव हुआ करते थे।

जिस 6 गांवों को जोड़कर जयपुर को बसाया गया था उन गांवों पुराना नाम आज के वर्तमान के नामों से भिन्न थे। – नाहरगढ़, तालकटोरा, संतोषसागर, आज का मोती कटला, गलताजी और आज के किशनपोल को मिलाकर जयपुर को बनाया गया था। – सिटी पैलेस के उत्तर में एक झील तालकटोरा हुआ करती थी। इस झील के उत्तर में एक और झील थी जो बाद में राजामल का तालाब बन गई । जयपुर शहर को बसाते समय सड़कों और अन्य मार्गो का विशेष ख्याल रखा गया था शहर की मुख्य सड़कों  की चौड़ाई पर खास ध्यान दिया गया।

शहर के मुख्य बाजार त्रिपोलिया बाजार में सड़क की चौड़ाई 110 फीट रखी गई तो वहीं हवामहल के पास ड्योढ़ी बाजार की  105 फीट की सड़क बनाई गई। जौहरी बाजार दुकानों के बरामदे से जौहरी बाजार की सड़क की चौड़ाई 90  फीट से ज्यादा रखी गई। वहीं पास के चांदपोल बाजार की सड़क  94 फीट चौड़ी बनाई गई। जयपुर के बसने के समय के समय की कुछ यादें के बारे में जानकर बताते है की उस समय मुख्य बाजारों के दोनों तरफ एक साइज की भवनों को बनाने पर ध्यान जोर दिया गया था ।

मुख्य सड़कों के दोनों ओर के भवनों को बाजार की तरफ झांकते हुए बनाने की स्वीकृति दी गई तो सभी भवनों का आकार और ऊंचाई एक जैसी हो इस का  खास ख्याल  रखा गया। जौहरी बाजार आज भी सबसे सुन्दर और एक रूप में दिखता हैं। ऐसे ही सुन्दर भवन सिरह ड्योढ़ी बाजार में देखने को मिलते हैं। इस बाजार को हवामहल जैसा सुन्दर बनाया गया।

चान्दपोल से सूरजपोल गेट पश्चिम से उत्तर की ओर है और यहां मुख्य सड़क दोनों गेटों जोड़ती है। बीच-बीच में चौपड़ है। त्रिपोलिया के सामने चौपड़ तो नहीं चौक बनाई गई।  यहां के प्रमुख भवनों में सिटी पैलेस, 18वीं शताब्दी में बना जंतर-मंतर, हवामहल, रामबाग पैलेस और नाहरगढ़ किला शामिल हैं। अन्य सार्वजनिक भवनों में एक संग्रहालय और पुस्तकालय शामिल है

जयपुर राजस्थान की राजधानी होने के अलावा, जयपुर राज्य का सबसे बड़ा शहर है। शहर की प्रतिष्ठता और यहां की प्राचीन संस्कृति का अतीत 18 शताब्दी की याद ताजा करती है और इसका श्रेय महान योद्धा और खगोल विज्ञानी महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय को जाता है। जयपुर का गौरवशाली अतीत शहर के महलों और किलों में आज भी जीवित है जिसमें एक शाही परिवार रहा करता था।

राजसी किले और हवेलियाँ, विशाल सुंदर बगीचे, सुंदर मंदिर, शांत परिदृश्य और समृद्ध व यहां की सांस्कृतिक विरासत ने जयपुर को दुनिया भर के पर्यटकों के लिए एक आदर्श स्थान बना दिया है। जयपुर का नजारा बहुत ही मनमोहक है जैसे ही आप इस शहर में कदम रखते हैं तो  आपको एक खुशी और प्रसन्नता अनुभव होती है। जयपुर शहर के गुलाबी रंग के भवनों और इमारतें आप के दिल को लुभाने वाला एक रोमांटिक आकर्षण लाता है। अगर आपके पास जयपुर के राजसी गौरव का अनुभव नहीं है, तो अभी अपनी यात्रा की योजना बनाएं !

जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। देश के सबसे प्रतिभाशाली वास्तुकारों में इस शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम सम्मान से लिया जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। 19वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या 1,80,000 थी जो अब बढ़ कर 2001 के आंकड़ों के अनुसार 23,37,3119 और 2012 के बाद 30.7 लाख हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन-उद्योग आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर के वास्तु के बारे में कहा जाता है कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नहीं मिलेगा। इस प्रकार के धरोहर होना हमारे भारत देश के लिए एक गर्व की बात है । भारत सरकार को ऐसे धरोहरों को साज सजावट का पूरा ख्याल रखना चाहिए ।